रक्षाबंधन: भाई-बहन के अटूट प्रेम को समर्पित है रक्षाबंधन, 26 अगस्त को मनाया जाएगा।
रिपोर्ट फराह अंसारी
भारत त्यौहारों का देश है। दिवाली, होली, दशहरा और रक्षा बंधन यहां प्रसिद्ध त्यौहार हैं। इन त्यौहारों में रक्षा बंधन विशेष रुप से प्रसिद्ध है। रक्षा-बंधन का पर्व भारत के कुछ स्थानों में रक्षासूत्र के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन काल से यह पर्व भाई-बहन के निश्चल स्नेह के प्रतीक के रुप में माना जाता है। हमारे यहां सभी पर्व किसी न किसी कथा, दंत कथा या किवदन्ती से जुडे हुए है। रक्षा बंधन का पर्व भी ऎसी ही कुछ कथाओं से संबन्धित है। रक्षा बंधन क्यों मनाया जाता है, यह जानने का प्रयास करते है।
पुराणों के अनुसार रक्षा बंधन पर्व लक्ष्मी जी का बली को राखी बांधने से जुडा हुआ है। कथा कुछ इस प्रकार है। एक बार की बात है, कि दानवों के राजा बलि ने सौ यज्ञ पूरे करने के बाद चाहा कि उसे स्वर्ग की प्राप्ति हो, राजा बलि कि इस मनोइच्छा का भान देव इन्द्र को होने पर, देव इन्द्र का सिहांसन डोलने लगा।
घबरा कर इन्द्र भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं और उनसे प्राथना करते हैं जिसके फलस्वरूप भगवान विष्णु वामन अवतार ले, ब्राह्माण वेश धर कर, राजा बलि के यहां भिक्षा मांगने पहुंच गयें। ब्राह्माण बने श्री विष्णु ने भिक्षा में तीन पग भूमि मांग ली। राजा बलि अपने वचन पर अडिग रहते हुए, श्री विष्णु को तीन पग भूमि दान में दे दी।
वामन रुप में भगवान ने एक पग में स्वर्ग ओर दूसरे पग में पृ्थ्वी को नाप लिया। अभी तीसरा पैर रखना शेष था। बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया। ऎसे मे राजा बलि अपना वचन नहीं निभाता तो अधर्म होगा है। आखिरकार उसने अपना सिर भगवान के आगे कर दिया और कहां तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन भगवान ने ठीक वैसा ही किया, श्री विष्णु के पैर रखते ही, राजा बलि परलोक पहुंच गया।
बलि के द्वारा वचन का पालन करने पर, भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न्द हुए, उन्होंने आग्रह किया कि राजा बलि उनसे कुछ मांग लें। इसके बदले में बलि ने रात दिन भगवान को अपने सामने रहने का वचन मांग लिया। श्री विष्णु को अपना वचन का पालन करते हुए, राजा बलि का द्वारपाल बनना पडा। इस समस्या के समाधान के लिये लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय सुझाया। लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे राखी बांध अपना भाई बनाया और उपहार स्वरुप अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ ले आई। इस दिन का यह प्रसंग है, उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी। उस दिन से ही रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाने लगा।